विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले हैं , वहां प्रदूषण जैसा एक ऐसा अभिशाप मिला है , जो विज्ञान की कोख से पैदा होकर प्राकृतिक संतुलन में व्यवधान पैदा करता है । आज सभी मानव समुदाय प्रदूषित वातावरण में जीने को मजबूर है । यह जानना खौफनाक है कि प्रदूषण की वजह से दुनिया में मरने वालों वाले लोगों में से 28 फ़ीसदी हिस्सेदारी हिंदुस्तानियों की होती है । वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा हो गया है । खुली हवा में लंबी सांस लेने को मानव तरस गया है , गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं, जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं । पर्यावरण प्रदूषण के कारण समय पर ना वर्षा आती है , ना सर्दी , ना गर्मी का चक्र ठीक चलता है । सूखा , बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोप का कारण भी प्रदूषण है ।
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष पर्यावरण प्रदूषण का कहर 26 लाख लोगों को अपनी क्रूरता का शिकार बना चुका है । केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जो आंकड़े सार्वजनिक किये वे बेहद चौंकाने वाले हैं । 65 शहरों की आबोहवा के परीक्षण में 60 की हालत बहुत खराब है जिसमें राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र प्रदूषण की भीषण चपेट में है ।
जिसे आपातकाल की संज्ञा दी जाती है पिछले दिनों एक सर्वे से पता चला कि 35 फ़ीसदी लोग देश की राजधानी से पलायन के इच्छुक हैं ।
अब दिलवालों की दिल्ली ” दिल की बीमारियों के दिल्ली ” में बदलने को बेबस है , दिल्ली की दमक फीकी पड़ रही है ।
कुदरत का इशारा साफ है “संभलिये नहीं तो समाप्त हो जाएगें ” I मानव विकास की राह में आगे बढ़ने की चाहत में प्रकृति के संतुलन में व्यवधान और असंतुलन पैदा करके बेशक सर्वश्रेष्ट बनने को बेताब है, लेकिन मानव आने वाली पीढ़ियों को विरासत में कौन सी जिंदगी की धरोहर सपना चाहता है ? जिसमें ना ही जीने के लिए शुद्ध वायु होगी, ना पीने के लिए शुद्ध जल, पोषण के बदले कुपोषण और जीने के लिए दवा से अधिक दुआ की जरूरत होगी ।
प्रकृति से प्रेम और परस्पर सहयोग से ही प्राणी मात्र की रक्षा होगी । जल जंगल और जमीन का संवर्धन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है ।
तो आइए मैं आप सभी द हील न्यूज परिवार के सदस्यों का अहवाहन करता हूँ, और आग्रह करता हूँ कि आप भी मेरे साथ लीजिए संकल्प ” भारत और सोंच ” दोनों को स्वस्थ बनाना है और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना है। क्योंकि अब विकल्प की गुंजाइश नहीं है ।
” स्वस्थ सोंच – स्वस्थ भारत “